1 AJAY KUMAR PANDEY April 29, 2023
Atal Bihari Vajpayee Poetry Poems, Kavita : नमस्कार दोस्तों - हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी सिर्फ राजनेता और प्रखर वक्ता ही नहीं बल्कि एक प्रसिद्ध कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी सबसे महान भारतीय राजनेताओं और राजनयिकों में से एक थे जिन्होंने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में तीन बार कार्य किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में पहली बार केवल 13 दिनों के लिए भारत के प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया, दूसरी बार उन्होंने 1998 से 1999 तक 13 महीने तक सेवा की और प्रधान मंत्री के रूप में उनका अंतिम कार्यकाल 1999 से 2004 तक पूर्ण कार्यकाल था।
वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सह-संस्थापकों और वरिष्ठ नेताओं में से एक थे। वह पाँच दशकों से अधिक समय तक भारतीय संसद के सदस्य रहे, और दस बार लोक सभा के लिए और दो बार राज्य सभा के लिए चुने गए। लखनऊ के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य करने के बाद स्वास्थ्य की स्थिति के कारण 2009 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। वे भारतीय जनता संघ (BJS) के संस्थापक और अध्यक्ष (1968-1972) थे।
अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। प्रधान मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान, भारत ने 1998 में सबसे उल्लेखनीय पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों में से एक को अंजाम दिया। 2015 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया गया था। वृद्धावस्था संबंधी बीमारी के कारण 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनका जन्म एक हिंदू ब्राह्मण में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी थे। उनके गृहनगर में स्कूल टीचर और उनकी मां कृष्णा देवी थीं। उनके दादा श्याम लाल वाजपेयी थे, वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में अपने पैतृक गांव बटेश्वर से ग्वालियर के पास मुरैना चले गए थे।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सरस्वती शिशु मंदिर में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और 1934 में फिर से बड़नगर, उज्जैन में एंग्लो-वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने बी.ए. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत की डिग्री और डीएवी कॉलेज, कानपुर से राजनीति विज्ञान में एम.ए. के साथ पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।
अटल बिहारी बाजपेयी जी भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष भी थे, मेरी इक्यावन कविताएं, इनकी प्रसिद्ध कविता संग्रह है। 16 अगस्त 2018 को राजनीति और साहित्य जगत का यह सितारा हमेशा के लिए सो गया।
अमर बलिदान, मृत्यु और हत्या , न दैन्यं न पलायनम् , इनके प्रमुख कृतियां हैं। 2015 में अटल बिहारी बाजपेयी जी को देश के शीर्ष नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
अटल जी तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में हमारे देश का नेतृत्व कर चुके हैं, भारतीय जनसंघ की स्थापना में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। तो आइए पढ़ते हैं अटल जी की कुछ चुनिंदा कविताएं. अटल बिहारी वाजपेयी की वो 10 कविताएं, Famous Atal Bihari Vajpayee Poems In Hindi, अटल बिहारी वाजपेयी की श्रेष्ठ कविताएं, अटल बिहारी वाजपेयी की कविता | Atal Bihari Vajpayee Poems, atal ji ki kavitaen
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atal bihari vajpayee poems |
जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई,
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ,
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।
सपनों में मीत
बिखरा संगीत,
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
क्या खोया, क्या पाया जग में,
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ,
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर,
खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है?
दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला,
आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया,
मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा,
कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव,
चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर
फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर,
ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई,
रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि
कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए
कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम
मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का,
तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है
दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार
दाँव पर सब कुछ लगा है,
रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर
हम झुक नहीं सकते |
हरी हरी दूब पर,
ओस की बूंदे
अभी थी,अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियाँ,
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्काँयर की कोख से,
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में,
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का,
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ,
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
सूर्य एक सत्य है,
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है,
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की,
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद,
हर मौसम में नहीं मिलेगी|
atal bihari vajpayee kavita in hindi lyrics |
जाने कितनी बार जिया हूँ,
जाने कितनी बार मरा हूँ।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूँ।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूँगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?
पूर्व जन्म के पूर्व बसी,
दुनिया का द्वारचार करूँगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
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बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहु गया रेखा फांद .
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं.
दूसरी अनुभूति
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी,
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं..
बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
झुलासाता जेठ मास,
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग,
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन,
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा,
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ. अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।.
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा .।
अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता,
अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता..
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता,
दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो,
चिनगारी का खेल बुरा होता है.
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो,
अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ..
ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो,
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है?
तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई..
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं,
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई?
अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो,
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो,
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार,
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध,
काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।.
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्र-पुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल
दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट
दो विशाल जंघायें हैं।
कन्या-कुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है,
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।.
जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकी हौ, वायुदूत के जहाज़ में।
जइयो तो जइयो, सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े हैं, मिर्धा महाराज में।
जइयो तो जइयो, मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन अंधेरिया रात में।
जइयो तो जइयो, त्रिशूल बांध जइयो,
मिलेंगे ख़ालिस्तानी, राजीव के राज में।
मनाली तो जइहो। सुरग सुख पइहों।
दुख नीको लागे, मोहे राजा के राज में।
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ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई,
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता,
तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई,
दूध में दरार पड़ गई।.
आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय न
अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष,
पुनः चमकेगा दिनकर।.
पंद्रह अगस्त का दिन कहता: आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है.
जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई .
कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं .
हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती .
इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है .
भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं .
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया .
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है .
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे .
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें .